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Thursday, 9 November 2017

सोशल मीडिया: युवाओं का एक अलग संसार

क्योंकि हमारी संस्कृति ही संसार में हमें एक अलग पहचान दिलाती है इसलिए हमें डिजिटल लाइफ और रियल लाइफ में संतुलन स्थापित करना ही होगा।



आज के इस उच्च प्राविधिक युग में हम प्रविधियों का नि:संकोच उपयोग कर रहे हैं और करना भी चाहिए क्योंकि हमें संसार में ऊंचा उठने के लिए उच्च प्रविधियों का उपयोग करना ही होगा।आज के इस डिजिटल युग में संचार माध्यम के रूप में सोशल मीडिया का उपयोग युवा सर्वाधिक करते हैं,जिसमें प्रमुख: फेसबुक,वाट्सअप, ट्विटर,इंस्टाग्राम,हाइक,लाइन और भी दर्जनों सोशल मीडिया एप्प आपको गूगल प्ले स्टोर पर आसानी से मिल जायेंगे।पूरे संसार में आज हम भारतीय सर्वाधिक सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक उपयोग करने वालों में पहले पायदान पर खड़े हैं और इन में युवाओं का योगदान सर्वाधिक है।

एक सर्वे के अनुसार,भारतीयों में नवयुवक सर्वाधिक फेसबुक उपयोग करते हैं और आश्चर्य की बात तो यह है कि उन युवाओं में भी सर्वाधिक 13-19 आयु वर्ग के हैं।सोशल मीडिया का उपयोग बुरा नहीं है, बुरी है इसकी लत जो विशेषत: आजकल युवाओं में देखने को मिल रही है, केवल युवा कहना बेमानी ही होगी क्योंकि इसका उपयोग आजकल पूरा परिवार करता है।सब अपने अपने स्मार्टफोन में व्यस्त रहते हैं जिसके कारण रिश्तो की प्रगाढ़ता धूमिल पढ़ती नजर आ रही है, रिश्तो के बीच मधुरता अब कड़वाहट में परिवर्तित हो रही है।हमारा युवा वर्ग पूरी तरह से आधुनिकता में जी रहा है जिससे अंत:पीढ़ी संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं और इसीकारण रिश्तों के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं,इससे कहीं न कहीं हमारी संस्कृति में भी परिवर्तन दिखने लगे हैं,आज का युवा अगर किताबें भी पड़ता है तो डिजिटल प्रारूप में (किन्डल संस्करण) जो आसानी से उपलब्ध तो है लेकिन हमारे स्वास्थ्य के लिए विशेषतः हमारी आँखों के लिए हानिकारक है।पहले लोग एकत्र होकर चर्चा-परिचर्चा करते थे जिससे लोगों में एकता सद्भाव बना रहता था जो आज देखने को नहीं मिलता।

आज हम सोशल मीडिया पर इस भांति जम गए हैं कि यह हमें अनेक बीमारियां वरदान स्वरुप प्रदान करती है जैसे किसी भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर कोई देवता उसे वर देता है,एक सर्वे में सिद्ध हुआ है कि जो लोग सोशल मीडिया का अधिक उपयोग करते हैं उन्हें अवसाद सिरदर्द चिड़चिड़ापन होने की प्रबल संभावना होती है,वह समाज में रहते हुए भी समाज से अलग थलग महसूस करने लगता है।

मैं यह मानता हूँ कि पहले दिनों की अपेक्षा आज संसाधन अधिक उपलब्ध है और इससे लोगों की सुलभता में अपार वृद्धि हुई है लेकिन हमें इसका उपयोग सजगता से करना चाहिए,आज हम जितने भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपयोग करते हैं उन से निकलने वाली ब्लू लाइट हमारी आंखों के साथ साथ पूरे शरीर के लिए घातक सिद्ध होती है इस तरह से देखा जाए तो युवाओं का जीवन इस भांति मोबाइल व लैपटॉप में कैद हो गया है जैसे किसी पिंजरे में कोई पक्षी कैद होता है जिसका ऊपर आसमान में परवाज करने की तीव्र इच्छा तो होती है लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाता।इस तरह आज का युवा वर्ग घंटो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर एक ही मुद्रा में बैठे रहते हैं जिसका उनपर विपरीत असर होता है।

अगर युवा वर्ग आवश्यकतानुसार इन संसाधनो का उपयोग करें तो यह उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है अन्यथा यह किसी श्राप से भी कम नहीं है क्योंकि इंटरनेट पर अच्छी व बुरी चीजें सिक्के के दो पहलू की तरह उपलब्ध है जिसका सकारात्मक पहलू हमारे लिए लाभदायक होता है इसलिए हमें इंटरनेट का चयनात्मक उपयोग करना चाहिए।युवा वर्ग को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि इस डिजिटल क्रांति का बुरा प्रभाव हमारे जीवन के संस्कृति-संस्कारों,रिति-रिवाजों को प्रभावित न करे क्योंकि हमारी संस्कृति ही संसार में हमें एक अलग पहचान दिलाती है इसलिए यह धुंधला ना हो इसका ध्यान रखना चाहिए। इसलिए हमें इस आधुनिक युग में अपनी रियल लाइफ और डिजिटल लाइफ में संतुलन स्थापित करना ही होगा।

3 comments:

  1. चराग़ कैसे अपनी, मजबूरियां बयां करे;
    हवा ज़रूरी भी, और डर भी उसी से है!

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने सचिन............
      लेकिन भाग्यवश आज इन चराग़ों के बस में है कि वह उतनी ही हवा ले जीतनी जरुरत है, अन्यथा बुझ जायेंगे।

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  2. बेहतरीन लेख 👌👌👌।

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