
'ट्वेल्थ फेल' अनुराग पाठक द्वारा लिखा गया यह उपन्यास अत्यंत प्रेरणादायक
है। आवरण अब्दुल वाहिद शेख द्वारा बहुत सुंदरता से तैयार किया गया है। जिसको ध्यान से देखने मात्र से आप पूरे कथानक को आसानी से
समझ सकते है। आवरण पर लिखी गयी एक लाइन बहुत आकर्षित और प्रेरित करती है।
'हारा वही जो लड़ा नहीं'
शुरुआत नायक मनोज के गावं से होती है। उसके
शुरूआती असफलता से लेकर आईपीएस बनने का सफर बड़े मर्मभेदी और रोमांचित ढंग से
दर्शाया गया है। शुरुआत बहुत रोचक न
होने के बाद भी लेखक के लेखनशैली ने पाठको को अंतिम तक बांधे रखने में कामयाब हुई
है।
लेखक की कलम गावों के परिवेश और वहां की सरकारी
प्रणाली की सच्चाई को छूते हुए , नायक के संघर्षमय जीवन की आर्थिक दशा, उसके सिद्धान्तों , देशसेवा के भाव और ईमानदारी को बड़े मार्मिक तरीके से उकेरते
हुए आगे बढती है।जैसे -
'डॉ के सामने बैठकर उसने सबसे पहले कहा "सर
मेरे पास आपकी फीस देने के लिए पैसा नहीं है।" पर वह डॉ सावित्री भोजनालय के
युवा मालिक जैसा भावुक और सरल नहीं था। उसने उसको क्लिनिक से भगा दिया।'
आगे बढ़ने पर राकेश और पांडे जैसे दोस्तों में
अंतर भी समझ में आ जाता है। हमें जिंदगी के ऐसे मोड़ पर राकेश जैसे दोस्तों की
जरुरत पड़ती है जब हम अपने सही पथ से भटकने लगते है।
बीच-बीच में पात्रों के संवादों को क्षेत्रीय
बोली में पिरोया गया है , जिससे गावों की सोंधी खुशबू का एहसास होता रहता
है। कहीं-कहीं पढ़ते पढ़ते
अचानक से हंसी फूट पड़ती है। लव और ड्रीम के बीच भी खूब उठा पटक चलती रहती है। आख़िरकार
यह सिद्ध होता है की प्यार पढाई में बाधक नहीं होती बस प्रेम के सच्चे अर्थ को
समझने की आवश्यकता है।
पूरा पढ़ लेने पर पता चलता है की जीवन में सफल
होने के लिए अगर आपको कुछ चाहिए तो वह है सही दिशा में कड़ी मेहनत।
एक अलग ऊर्जा की अनुभूति होती है। यह प्रमाणित होता है कि आपके जीवन में चाहे जीतनी भी
कठिनाइयाँ हो , संसाधनों की कमी हो फिर भी आप अपने परिश्रम और
लगन के बल पर अपने ऊँचे से ऊँचे सपने को साकार कर सकते है। आसमान को छू सकते है।
"लाखो ठोकर के बाद भी खुद को संभाल लूँगा,
गिर कर फिर उठूँगा और चलता रहूँगा|"
गिर कर फिर उठूँगा और चलता रहूँगा|"
युवाओं को यह उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए। सिर्फ
इसलिए नहीं की जीवन में तमाम गरीबी और कठिनाईयों के बावजूद एक आईपीएस अधिकारी कैसे बना
जा सकता है बल्कि एक अच्छा और समझदार इंसान बनने के लिए भी।
No comments:
Post a Comment